राम रतन धन पायो
पायो जी म्हे तो रामरतन धन पायो
बस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरु, किरपा को अपणायो
जनम जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो
खरचै नहिं कोई चोर न लेवै, दिन-दिन बढत सवायो
सत की नाव खेवहिया सतगुरु, भवसागर तर आयो
मीरा के प्रभु गिरधरनागर, हरख-हरख जस पायो
Sunday, September 26, 2010
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