हरि तुम हरो जन की भीर।
द्रोपदी की लाज राखी चट बढ़ायो चीर॥
भगत कारण रूप नर हरि धर।ह्यो आप समीर॥
हिरण्याकुस को मारि लीन्हो धर।ह्यो नाहिन धीर॥
बूड़तो गजराज राख्यो कियौ बाहर नीर॥
दासी मीरा लाल गिरधर चरणकंवल सीर॥
Wednesday, September 22, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
भजन अच्छा लगा धन्यवाद|
ReplyDelete